कविता"जाने कैसे दिन हैं "


जाने कैसे दिन हैं 


"इस कविता में मौसम के बदलते मिजाज़ को दर्शाया गया है"



जाने कैसे दिन हैं आये 
कभी गर्मी कभी सर्दी है सताए

मच्छर भी रातों को जगायें
और धूप में भी कभी बादल आ जाएँ

गले की हालत बिगड़ गयी है 

दवाई खा- खा कर इच्छा भर गयी है

फिर भी ठन्डे पानी पीने की 

हमें तलब बहुत लग गई  है

स्वेटर पहने या न पहने 

बहुत बड़ी सिरदर्दी अब हुई है

पंखे भी हो गए हैं चालू

पर कम्बल भी रखे नहीं हैं

जा रही है शीत ऋतू अब तो

और ऐ .सी. की सर्विस नहीं हुई है

कैसी बनी  कविता ये हमारी

हमको अब तो फ़िक्र बड़ी हुई है

मस्ती में ये तो लिख दी है

अच्छे कमेंट की अब ख्वाइश हुई  है
 
(अर्चना)






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