हिन्दू नववर्ष पर कविता "नववर्ष की पावन बेला आई"

हिन्दू नववर्ष पर कविता "नववर्ष की पावन बेला आई"


हिन्दू नववर्ष पर कविता "नववर्ष की पावन बेला आई"


नववर्ष की पावन बेला आई
दिल में है नयी उमंगें छाईं
जहाँ तलक भी नज़र है पड़ती
दिखती है धरती हर्षाई


खेतों में लहराती फसलें
देख-देख किसान भी झूमे
आने वाला है बैसाख भी
लगने वाले हैं कई मेले
हरे-हरे पत्तों ने भी खूब है
प्रकृति की रौनक बढ़ाई
जहाँ तलक भी नज़र है पड़ती
दिखती है धरती हर्षाई


रंग-बिरंगे पुष्प खिले हैं 
भँवरे जिन पर डोल रहे हैं
चल रही जो शीतल हवाएँ
मन को हैं मलंग कर जाएँ
कूकने लगी हैं कोयल भी
चिड़ियों ने अपने घौंसले बनाये
जहाँ तलक भी नज़र है पड़ती
दिखती है धरती हर्षाई

नवरात्रि का आरम्भ हुआ है
माँ का घरों में दरबार सजा है 
सुबह-सुबह शंखों की गूंज से
बड़ा आलौकिक वातावरण हुआ है
आपके जीवन में भी यह नववर्ष
सारी खुशियों को भरके जाये 
जहाँ तलक भी नज़र है पड़ती
दिखती है धरती हर्षाई


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1 टिप्पणी:

  1. बहुत सुंदर रचना है ...
    नाव वर्ष की आभा लिए पावस शब्दों से गुँथी रचना ...
    माता के नवरात्रि की हार्दिक बधाई ...

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