कविता "ना जाने कैसा है फितूर "


ना जाने कैसा है फितूर 
मेरा नहीं इसमें कसूर
बस तेरे ही सपने आते
बंद करूं आँखें या खोलूँ
जबसे तेरी  झलक दिखी
तब से मैं पागल सी हुई
फिर तेरी तलाश में ही मैं तो
दीवानों की तरह भटकी
अब तो बहुत दिन हो चले 
इतना ना कर मुझे बेकरार
मिलजा कामयाबी आकर के तू
कि अब तो नहीं होता इंतज़ार

अर्चना



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