लगन तुमसे लगी मोहन
जबसे लगन तुम से लगी मोहन
कुछ और न मुझको भाता है
अँखियाँ रहती दर्शन को व्याकुल
कोई और समझ न पाता है
ना भाती है मुझको पायल
न गजरा मुझको सुहाता है
बस साथ तुम्हारा पाने को
मेरा मनवा ललचाता है
मै फिरती हूँ बस इधर-उधर
क्यों बांह नहीं फैलाते हो
आ जाओ पोंछो अश्रूं मेरे
यहाँ जिया मेरा घबराता है
ये जग तो है बस रैन बसेरा
प्राणी आता-चला जाता है
एक तुम ही हो जो हो अन्नंत
जिसने भी छुआ तर जाता है
चाहें न दो तुम धन-दौलत
बस रख लेना अपनी ही शरण
क्योंकि चरणों में प्रभु तुम्हारे
हर सुख मुझ को मिल जाता है
कोई बोले मुझे दीवानी है
और कोई कहता जोगन
इस दीवानगी में है जो मजा वो
एक भक्त समझ ही पाता है
अर्चना
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