लाडला मेरा
सूनी बगिया में जैसे
फूल था एक खिल गया
लाडला आया मेरा तो
आँगन खुशी से भर गया
पकड़ा उसने हाथ मेरा
तो मन में उमंगे कर गया
उसकी आँखो में ही तो
सपना मेरा अब पल गया
लड़खड़ा के जब चला
वो हुई मैं उसकी दीवानी
काम सारे घर के छोड़े
घंटो तलक थी निहारी
माँ सुना जो मुँह से उसके
आँखे मेरी नम हो गईं
माँगू रब से कुछ भी ना
सब खुशियाँ मुझे थीं
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें