कविता "तू ही जाने प्रभु तेरी जो माया "


तू ही जाने प्रभु तेरी जो माया

कहीं धूप है और कहीं छाया
किसी को राजा ,किसी को रंक बनाया
ये हमारी समझ में क्यों नहीं आया 
क्यों नहीं लिखीं एक सी तकदीरें
कोई दाने को दर -दर घूमे
और कोई भरी हुई थाली में भी
जब चाहे देता लात लगाए
किसी पे नहीं तन ढकने को कतरन
रोता रहता वो हर एक नये दिन
और कोई लाखों खर्च करके
कटी-फटी डिज़ाइनर ड्रेसेस बनवाये
किसी का बच्चा बड़े नाज़ों से पलता
जो खिलौना छू दे वो ही मिलता
और कोई बच्चा बूट पोलिश कर -कर के
बड़ी मुश्किलों से जीवन बिताए
प्रभु आप करोगे कब ये न्याय

ये और ना हमसे देख जाये

प्रभु , और ना हमसे देख जाये


 

                                                  








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