माँ- बाबा
माँ ने मुझे था झूला झुलाया
बाबा ने काँधे पे मेला दिखाया
काटी थीं दोनो ने जग- जग के रातें
मेरे लिए लाखों सपने सजाते
छोटी सी उफ पर भी वो दौड़े आते
अपने वो सारे थे गम़ भूल जाते
गुड़िया खिलौने वो चुन- चुन के लाते
मेरी हँसी संग थे वो झूम जाते
आती थी बारिश तो खुद भीग जाते
मुझको तो छाते के नीचे छुपाते
चाहें वो खुद हों कितने परेशान
पर न मुझे थे कभी भी जताते
मुश्किल है लफ्जों में कहना
माँ- बाबा का सारा प्यार
अर्चना
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