कविता " याद "

याद

बहुत याद है आता तू
 अब जाने के बाद
पहले तो सताता था 
मुझको दिन और रात
अब तो रही नहीं कोई
जीने की बजह
जैसा भी था तू था अच्छा 
अब वापस आजा
तुझ बिन तो एक जैसे हुए
मेरे सुबह और शाम
न दिन में मैं कुछ काम करू
न रात को आराम
चली गयी तेरे साथ ही
घर की सारी मुस्कान
अब  ख़ामोशी बन कर आई
जाने कब तक मेहमान
बहुत याद है आता तू
 अब जाने के बाद
पहले तो सताता था 
मुझको दिन और रात

अर्चना




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