कविता " तनहाई"

तनहाई

तनहाई भी बड़ी अजीब है

बताती  छोटी बड़ी हर चीज़ है

तनहाई में ही समझते हैं खुद को

भीड़ भाड़ में न समझे थे जिसको

तनहाई में करते खुद से ही बातें

अंतर्मन को हैं पढ़ पाते


भले बुरे का आंकलन करते



तनहाई में ही तो चिंतन करते


तनहाइयों  में तुम कुछ दिन तो बिताओ





कुछ नया सा  कुछ अच्छा सा करके दिखाओ

अर्चना







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