नानी के लिए कविता | मेरी नानी
बात है ये थोड़ी सी पुरानी
एक मेरी भी थी बूढी नानी
इतना दुलार थी वो देती
थीं माफ मेरी सारी शैतानी
जब थी छुट्टियाँ हो जाती
वो पलकें बिछा के बैठ जाती
मेरी लिए न जाने वो
कितने ही थी पकवान बनाती
उसके हाथ के अचार और कचरी
नहीं मिले मुझे और कहीं भी
मेरे जिद करने पे तो वो
घर पर ही झूला दे लगाती
उसकी लोरी थी कुछ ऐसी
के नींद मुझे झट से आ जाती
उसके बनाये हुए स्वेटर से
मेरी सब सर्दी भाग थी जाती
आँखें मेरी अब नम हो जातीं
जब याद मुझे नानी आती
अब तो वो बन गयी जैसे
बचपन की सबसे प्यारी निशानी
बात है ये थोड़ी सी पुरानी
एक मेरी भी थी बूढी नानी
इतना दुलार थी वो देती
थी माफ मेरी सारी शैतानी
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