मेले पर कविता " दशहेरा का मेला"
लगा हुआ दशहेरा का मेला
भीड़ के मारे रेलम -पेला
बच्चों ने है उधम मचाया
कब चलेंगे कह-कह सुनाया
आज का दिन छुट्टी का आया
हमने मेले का प्लान बनाया
पहुँचे जब मेले के अन्दर
कितनी थी लाइटें सुंदर-सुंदर
बीच में था एक फव्वारा
हमने भी सोचा यह यारा
क्यों न लें परिवार की सेल्फी
पर पहले से भीड़ बहुत थी
फिर देखा जब हमने मौका
खींची फोटो और शेयर किया
एक अनोखे आईनों की दुकान आई
हमने उसकी टिकट कटवाई
दिखता उन में अजब-गजब सा
कोई लगता बहुत ही मोटा
और कोई लगे बहुत छोटा
हंस-हंस के सब बहुत थक गये
अपने इतने रूप दिख गये
फिर बच्चों को दिखे खिलौने
छोटा हर खिलौने पर फैले
जब ख़रीदा चाबी का बंदर
तब चुप हुआ मेरा सिकंदर
बड़े को तो बस पुलिस ही बनना
कार और बंदूक लेने की तमन्ना
फिर आया झूलों का नंबर
मै डरी अन्दर ही अन्दर
पतिदेव और बच्चे ही बैठे
जाइंट-व्हील वाले झूले पर
फिर मैंने की खरीदारी
ज्वेलरी ले ली ढेर सारी
दिख गयी फिर चाउमीन की दुकान
तब न रहा कुछ सब्र का काम
सबके मन को थी वो भायी
मिलकर सबने आइसक्रीम भी खाई
हम मौत का कुआँ भी देख के आये
स्टंट-मैन उसमे कार चलाये
दंग रह गये देख के करतब
ताली बज उठीं चारों ही तरफ
चालू हुई फिर राम लीला
बैठकर के उस को भी देखा
इतने अच्छे इफ़ेक्ट दिए थे
सच में हम अयोध्या पहुँच गये थे
मेले में जब परिवार है जाता
खुशियों को वो संग है लाता
सच में बड़ा मजा था आया
लगा के बचपन लौट के आया
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