दहेज़
बेटी के माँ-बापों
को ही
कैसा है ये
फर्ज मिला
समाजिकता के
नाम पर
दहेज़-प्रथा का
जन्म हुआ
अपने जिगर के
टुकड़े को तो
बेटीवाले दे देते हैं
और साथ ही
ऐ.सी. माइक्रोवेव
बड़ी गाड़ियाँ
भी देते हैं
इतना देने पर
भी क्यों
मुँह बंद नही
होता उनका
लड़की वालों पर
कर्ज चढ़े
और वो लेते हैं
बैठ मजा
ना पूरी होती
ख्वाहिश तो
देते अत्याचार
की धमकी
भूल हैं जाते अपने
घर भी
कोई होगी बहन
और बेटी
सबको स्नेह देने
के बदले
बहु को ये
उपहार मिला
जला दिया लालच
अग्नि में
जीवन का उसके
अंत किया
किसी के जीवन
का ना पैसे से
मोल लगाना
समय तुम्हारा
भी आयेगा
ये तो है
आना-जाना
अर्चना
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