बेटी
बेटी को भी बेटा मानो
शिक्षित करो और तब जानो
ना होती किसी से कम है
उसमे भी बेटे सा दम है
कोई क्षेत्र अब बचा नही है
परचम जहां फैला नही है
हो चाहे कुश्ती का मैदान
सेना में भी बढ़ाती शान
चौके-छक्के वो भी लगाए
न घबराए अंतरिक्ष में जाए
शिक्षक बनके ज्ञान फैलाये
डाॅक्टर बनके जान बचाये
संसद में मच जाये हलचल
जब गर्जे है निर्भय होकर
कई राज्यों में तो देखो
सत्ता कितनी अच्छी चलाये
फिर भी जाने कुछ अज्ञानी
उसके जीवन को दें मिटाए
अज्ञानी कहना अनुचित है
महामूर्ख से भी मूर्ख हैं
बेटी की संख्या जो हुई कम
सूने होंगे कितने ही घर
घर की लक्ष्मी कहां से लाओगे
बेटे-पोते कहां से पाओगे
बदल चुका है आज ज़माना बेटी ने परिवार को थामा
अभी से ही संकल्प उठाओ
कन्या भ्रूणहत्या का विरोध जताओ
अर्चना
अर्चना
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें