लेकर के कुछ
निकल पड़ा अनजान सफ़र पे
परवाह नहीं करता अभी से
अच्छा-बुरा सब रब ही करे
करता हूँ बस मैं कर्म अपने
तन से नहीं और मन भी से
एक बात सभी तो हैं कहते
जो खोजते मंजिल उन्हें मिले
अर्चना
अर्चना
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