कविता " जगमग तारे '

जगमग तारे

ओ नील गगन के 
जगमग तारे
क्या बैठोगे तुम
पास हमारे
करनी हैं तुमसे
कुछ बातें
गर फुर्सत के
तुम्हे पल जाते
एक छोटे से
बालक ने 
किया यही
तारे से सवाल
कैसे इतनी 
ऊँचाई पर भी
तुम हो डटे
हुए अब तक
यहाँ तो लोग 
थोड़ा उठते ही 
गिर जाते हैं
पलक झपक
फिर तारे ने
दिया उत्तर
चाहें पहुंचो
जितना ऊपर
रखना अपना
शील स्वभाव
और रहे 
होंठों पे मुस्कान
मैं भी कभी
न घमंड करता
हर रात समय
पर ही दिखता
कभी न लेता 
आलस से काम
जगमग चमकता 
हूँ हर शाम
मेरा कहना भी
है तुमसे 
बच्चों याद रखना 
ये बातें
जो भी करते
समय से काम
ना दिखाते बस
झूठी शान
पांव जमे रहते
हैं ऊपर
लिख देते हैं
वही जन
स्वर्ण अक्षर से
फलक पर नाम

अर्चना










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