कविता " चित्रकार "


चित्रकार

कितना महान वो चित्रकार 
जिसने रचाया ये संसार
कैसी सजाई ये जमीन 
यहाँ फूल तितली और नदी


यहाँ हवाओं के साथ में 

कितने ही पंछी नाचते
कितने विशाल हैं ये पहाड़ 
सब दृढता को इनकी मानते


यहाँ जब भी झरने गूँजते

कोई धुन मधुर हैं छेड़ते
जब सुबह की होती पहर
सुंदर लालिमा नभ में दिखे


यहाँ वृक्षों के साये में

कितने ही जीवन हैं पलें
जब पड़े वर्षा मृदा पर 
सोंधी सी खुश्बू उठे


पत्तों पे जब है ओस पड़े

लगता है मोती सज गए
जब घड़ियाँ आयें रात की
तारों की चादर जचे


फिर जो कमी थी रह गई 

तो बनाया उसने आदमी
आदमी की है ये जिम्मेदारी
के ना बिगाड़े ये सुंदर कृति

अर्चना

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