कविता"बच्चे हो गए बड़े सयाने"




बच्चे हो गए बड़े सयाने



"प्रस्तुत कविता में आजकल के बच्चों की शैतानियों का चित्रण किया गया है"



बच्चे हो गए बड़े सयाने 
ना पढने के ढूंढे बहाने
जब भी पढने को बैठाओ
कहानी लगते हैं बताने

भूख भी लगती प्यास भी लगती
तभी इन्हें है नींद भी आती
सारे दिन जब ये खेलें तो
नहीं कोई भी चीज़ है भाती

डॉक्टर, इंजीनियर इन्हें नहीं बनना
सिंग्हम ,सुल्तान ये बनना चाहें
लेसन याद नहीं हैं होते
पर कार्टूनों के डायलॉग आयें

जब शांति से कोई है सोता
तभी ये जी भर उधम मचाएं
रोटी सब्जी से जी हैं चुराते
मेगी , पास्ता जमकर  के खायें

पहले माँ-पिता को प्रणाम थे करते 
अब तो करते हाए और बाए
बदल गया है बहुत जमाना
अब बच्चों को दोस्त बनायें
 
अर्चना




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