बेटी को बचाना है
"इस कविता के माध्यम से एक बेटी ,माँ और नारी की अहमियत को समझाया गया है|"
बेटी को बचाना है
हर घर को चहकाना है
बेटी बिना संसार अधूरा
सबको ये अब समझाना है
बेटी ही बनती है नारी
समाज की आधी है आबादी
गर अनुपात ये बिगड़ जायेगा
तो कौन घरों की शोभा बढ़ायेगा
और कौन सूनी कलाइयों पर
राखी सुंदर-सुंदर- सजायेगा
हर एक रूप में वो तो खिलती है
हर एक घड़ी में धैर्य धरती है
किसी के आँगन में रौशनी है करती
अर्धांगनी बन जीवन में रंग भरती है
गर इसकी कमी हो जायेगी तो
दुल्हन समाज कहाँ से पायेगा
बेटी एक दिन माँ बनती है
नये जीवन को पैदा करती है
घर को छोटे -छोटे से बच्चों की
वो ही किलकारी से भरती है
गर बेटी को नहीं पायेंगे
कैसे फिर हम रह पायेंगे
एक न एक दिन हम सब ही
अस्तित्व मानवता का खो जायेंगे
(अर्चना)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें