कविता 'कुछ और ना "




कुछ और ना
कुछ और ना मांगू दुआ
बस यार ही मुझे मिलता
बस प्यार ही मेरी पूजा 
और यार ही मेरा खुदा
जब बातें है वो करता
तो फूल से हैं झड़ जाते
मेरी सारी परेशानियों को
एक पल मैं ही वो ले जाते
जहाँ पर वो कदम है रखता
खुलता है नया रस्ता
और एक सुनहरी मंजिल को
 हम दोनों बढे जाते
ना जाने के कैसा है
ये दो दिलों का रिश्ता
लग जाती जो चोट उन्हें
तो आंसू  मेरे आते
कुछ और ना मांगू दुआ
बस यार ही मुझे मिलता
बस प्यार ही मेरी पूजा 
और यार ही मेरा खुदा

अर्चना





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