कविता" जब कोई न हो साथ तेरे "

जब कोई न हो साथ तेरे




"प्रस्तुत कविता आत्मविश्वास पर आधारित है"



जब कोई न हो साथ तेरे
चारों तरफ अँधियारा ही दिखे
तब किरण ज्ञान की पाना तुम 
इस को पाकर सब ही हैं तरे
फिर न कोई होगी उलझन
इस ज्ञान के आगे सब हैं झुके
चाहें कितने हों बेईमान
बस एक चाणक्य उन्हें सीधा करे
फिर तेरे भी गुणगानो को 
यह दुनिया भी आकर देखे
 
                                                अर्चना




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