कविता "गुड़िया"



गुड़िया


पापा ने दी एक गुड़िया

सब खिलोनों में बढ़िया

गुड़िया के संग सोया करती

गुड़िया के संग घुमने जाती

गुड़िया के संग खेला करती

कभी कट्टी –बट्टी हो जाती

 दोस्त भी आये शादी में उसकी

दावत खायी और की मस्ती

मैंने उसको खूब सजाया

गुड्डे राजा को दिया थमाया

याद मुझे आती है गुड़िया


सब खिलोनों में थी बढ़िया  

अर्चना

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