अंधविश्वास पर कविता
"कुछ बाबाजी"
भोले - भाले लोगों को
कुछ बाबजी रोज हैं ठगते
साइन्स के एक्सपेरिमेंट दिखा
खुद को भगवान बताया करते
पर अंदर से ये बहुत मेले
अत्याचार महिला पर करते
बाहर से दिखावे के लिए
ब्रह्मचर्य का पालन करते
जितना धन ना उद्द्योग्पतियों पर
खजाने इनके पास में मिलते
आश्रमों में इनके ही तो
लाठी ,तमंचे और बंदूके मिलते
ऐसे लोग ही औरत को
पुत्र प्राप्ति की दवाएं देते
पुरुषों में होते ये जीन्स
अनपढ़ , गंवार कहाँ समझते
पहन कर के केसरिया चोला
रूप नये -नये हैं धरते
बगल में तो होता चाकू
होंठ से राम जपा करते
भूत-प्रेत के अस्तित्व को
ये ही हैं बढ़ावा देते
खुद जीते फाइव स्टार की जिंदगी
जनता से नेम- व्रत करवाते
ऐसे पाखंडी लोगों के
ना बहकावे में कभी भी आना
वर्ना तन , मन और धन से