हास्य कविता "बबलू भैया की कार "



हास्य कविता "बबलू भैया की कार "




बबलू भईया गाँव चले
नई कार में खूब जचे
चश्मे,टोपी में चमकें
स्टाइल दिखाये बिना नहीं रुके
तीन घंटे में जब गाँव पहुंचे 
उन्हें देख बच्चे उछले
भईया ख़ुशी से बहुत अकड़े
सोचे बच्चे कितना याद करें
पर बच्चे निकल गए साइड से
गाड़ी पर  सब जा चिपके
कोई  बैठा छत पे  चढ़ के
कोई शीशे में चेहरा देखे
कोई  वाईपर को खींच रहा
बाकि के सीटों पर कूदें
ये सब देख भईया चौंके
कोई भी न चाय -पानी पूंछे
भीड़ लगा बस कार तकें
ऊपर से गर्मी थी भयंकर
पसीना तर-तर था टपके
फैंका चश्मा और सूट फैंक के
भईया वहां से रफुचक्कर हुए







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