कविता "वरदान"

वरदान

प्रभु मुझको दो यह वरदान
कर पाऊ मैं जनकल्याण
निर्जन दुर्बल जो मिले पथ पर
गले लगाऊ भेद भूल कर
दया स्नेह हो जिसके पास


वो होता असली इन्सान

अर्चना

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