कविता " अनाथ "


अनाथ

कुछ प्यार दुलार और संस्कार
गर मिल जायें एक अनाथ को
तो हो जाये उसका भी उद्धार
तरसते हैं ये भी किसी घर
को अपना कहने को
माँ की छाया में रहने को
पापा के संग में खेलने को
इन की आँखों में भी होते
कुछ सपने ऊँचा उड़ने के
डाक्टर इंजिनियर और
पुलिस पायलेट बनने के
ना जानें क्यों होती खोटी
इन मासूमों की तकदीरें
ना कोई फरमाइश सुनता
ना आकर इनका हठ देखे
जो मिलता वो खा लेते
कभी-कभी भिक्षा लेते
ना चाहकर भी ये तो
दर-बदर की राहें फिरते
कितने समाज में ऐसे लोग
जिनको नहीं संतान का योग
अनेकों ढोंगी बाबाओं ने
जिनसे बहुत ठगे हैं नोट
क्यों ना युगल वो आगे आयें
किसी अनाथ को गोद उठायें
दें उसको माँ-बाप का प्यार





चँहकायें अपना घर-संसार

अर्चना

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