कविता" फिर से "


फिर से 

आओ फिर से वादा कर लें
साथ साथ  मुस्काने का
आओ फिर से खायें कसमें
गीत मिलन का गाने का

थोड़ी कोशिश मैं करूं
थोड़ा तुम साथ निभाओ
तुम करो गुस्से को काबू
और मै भी ना इतराऊँ

ऊँच-नीच तो आ ही जाती
माना हर रिश्ते में
पर इसका मतलब नही
ये के दूर तुम मेरे दिल से

बाहर से मैं गुस्सा हूं
लेकिन पछताता मन में
किसकी थी बचकानी गलती
उलझा हूँ इसी भँवर मे

अगर मैं आगे हाथ बढ़ाऊँ
तो क्या छोटा हो जाऊँगा
पर इसके बदले में ही तो









लाखों खुशियाँ पाऊंगा

अर्चना

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