मासूम बचपन
"इस कविता में आज के युग की पढाई का बच्चों पर प्रभाव दिखाया गया है"
यह कैसा है वक़्त आ गया, बचपन हो जैसे छिन गया
भारी-भारी बस्तों तले,नन्हा सा जीवन दब गया
स्कूल ट्युशन और होम वर्क, इसमें ही सारा वक़्त गया
खेलने के लिए अब तो ,बच्चा-बच्चा तरस गया
भारी-भारी बस्तों तले,नन्हा सा जीवन दब गया
खेलने के लिए अब तो ,बच्चा-बच्चा तरस गया
चढ़ गए अभी से चश्मे मासूमों की आँख पर
और होने लगा सिरदर्दघंटो-घंटो याद कर
माँ -बाप भी देते हैं तानेदूसरे बच्चे को दिखा
तुम्ही कैसे पीछे रहेदोस्त से सीखो ज़रा
ज़िन्दगी लगती है इनकोबहुत बड़ी प्रतियोगता
डर के मारे हार से ये जान देते हैं गँवा
क्या बुरा होगा अगरजो चाहते हैं ये बनें
एक जैसी नही हैं होतीअपनी भी सारी उंगलियाँ
इनके भी मन में तो झाँको
क्या इच्छा है यह तो जांचो
वैसा ही प्रशिक्षण दिलवाओ
सुनहरा कल फिर देख पाओ
अर्चना
चढ़ गए अभी से चश्मे मासूमों की आँख पर
और होने लगा सिरदर्दघंटो-घंटो याद कर
माँ -बाप भी देते हैं तानेदूसरे बच्चे को दिखा
तुम्ही कैसे पीछे रहेदोस्त से सीखो ज़रा
ज़िन्दगी लगती है इनकोबहुत बड़ी प्रतियोगता
डर के मारे हार से ये जान देते हैं गँवा
क्या बुरा होगा अगरजो चाहते हैं ये बनें
एक जैसी नही हैं होतीअपनी भी सारी उंगलियाँ
इनके भी मन में तो झाँको
क्या इच्छा है यह तो जांचो
वैसा ही प्रशिक्षण दिलवाओ
सुनहरा कल फिर देख पाओ
अर्चना
अर्चना
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