शायरी"चार कदम के"




चार कदम के

हमसफर थे
बस चार दिनों को
मिले थे
बस चार दिनों 
में ही वो
मेरे दिल में
बसे थे
रोए थे हम
हँसे थे
रूठे भी और
फिर मने थे
बस चार दिनों
में ही हम
पूरी उम्र को
जिये थे
चार दिनों में
मिलन हुआ
और फिर अलविदा
कह दिए
चार दिनों के
बाद तो हम
जिंदगी बेमानी 
सी जिए 

अर्चना

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