शायरी "ना जाने ये कैसा रिश्ता है"



ना जाने ये कैसा रिश्ता है

मेरा और मेरे प्यार का

जितना चाहूँ दूर हो जाऊँ

उतना ही मैं पास खिंचा

पता मुझे यार की फितरत

ना मिलेगा कुछ भी मकां

फिर भी परवाने की तरह

 मैं तो चाहूँ हरदिन जलना

बस उसमें वो बात है दिखती

जिस पर हुआ मैं तो फ़िदा

 चांहे लाख  वो मुझे ठुकराले

पर ना टूटेगा दिल का रिश्ता



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