कविता " दुनियादारी "

दुनियादारी

चार दिनों की दुनियादारी
फिर काहे की मारामारी
मिट्टी से बना हुआ ये तन 
और मिट्टी में मिल जायेगा
कुछ भी ना लाया साथ में तू
और कुछ भी ना ले जायेगा
हर दिन जी ले हर पल हँस ले
ये पल ना दुबारा आयेगा 
छोड़ के ईष्या को तू देख
मन मंदिर तेरा बन जायेगा
बस प्रेम बसा जीवन में तू
ये धन ना कम हो पायेगा
जितना बाँटेगा इसको तू
उतना ही बढ़ता जायेगा 
जीवन में माना उलझन बहुत 
पूर्ण सुखी ना कोई पायेगा
सुख-दुःख हैं जीवन के पहलू
एक आये तो दूजा जायेगा

अर्चना

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