कविता "मेरे इश्क की ये दास्ताँ है"

 

 

"इस कविता में एक इंसान अपने प्यार से मिले धोखे को बयां कर रहा है |"

 

 


मेरे इश्क की

ये  दास्ताँ है

एक हंसी चेहरे ने

मुझको ठगा है

चांहे यार था 

पत्थर दिल का

पर वो ही लगता

मुझको भला था

सब चांहे लगें

मुझे समझाने

पर दिल उनकी 

कभी न माने

जुल्म भी यार

ने कर डाले

फिर भीं हम न

हुए बेगाने

हमारी वफ़ा का

सिला मिल जाये

दिल था बस यही 

एक आस लगाये

पर शायद ये

गलत थी बातें

रोकर काटनी 

बाकी थी रातें

अब जाकर हमको ये

यकीं हुआ है

जब यार गैरों की

बाँहों में दिखा है

ये बातें तो

बहुत सताएं

जब धोखा 

अपनों से खायें

 
अर्चना

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