कविता"काम नहीं कोई छोटा"


काम नहीं कोई छोटा 


"इस कविता में एक छोटा काम करने वाले इंसान के जीवन के विषय में लिखा गया है"


काम नहीं कोई छोटा होता 
बस सोचने का नजरिया होता 
छोटे- छोटे कामों को करके ही
यकीनन ही इसांन बड़ा होता

छोटे काम में ना कोई बुराई है
मेहनत करके ही तो खाई है
दर दर तो नहीं है वो भटका
स्वाभिमान को अपने जिंदा रखा
सोता चैन की नींद भी वो क्योंकि
दो नम्बर की ना उसपे कमाई है

वो नहीं फिजूल खर्चे करता
घर में ही है मनोरंजन करता
खाता वो भी है दाल रोटी
लेता इसी हवा को वो भी
प्रभु से करता शुक्रिया जो भी है
दिया और बजाता है सुख की बंसी 

(अर्चना)





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