चल री सखी हम ब्रज को जाएं
चल री सखी हम ब्रज को जाएं
अब की होली कुछ ऐसी मनाएं
रंग लें खुद को कान्हा के रंग में
और सारे दुख भूल जायें
जब गोविंद चलाता पिचकारी
बहती हैं अनेक सुख की नदियां
और रँग उड़ाता जब हवाओं में
महकता है ब्रज का कोना कोना
हम भी उस आलौकिक दृश्य का
क्यों ना सखी आनन्द ले आएं
रंग लें खुद को कान्हा के रंग में
और सारे दुख भूल जायें
कहते हैं सब ही ये बात कि
कान्हा के नयन बड़े मदवाले
हम भी कर लें भक्ति का नशा
ना भांग की फिर जरूरत पड़े
फिर तो अबकी होली में हम
जी भर कान्हा संग झूमे गायें
रंग लें खुद को कान्हा के रंग में
और सारे दुख भूल जायें
वाह..
जवाब देंहटाएंबेहतरीन
सादर
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" सोमवार 13 मार्च 2017 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसुन्दर शब्द रचना
जवाब देंहटाएंहोली की शुभकामनाएं
http://savanxxx.blogspot.in
बहुत सुन्दर। होली की शुभकामनाएं । ब्लॉग अनुसरणकर्ता बटन लगायें ।
जवाब देंहटाएंबहुत- बहुत धन्यावाद ।
जवाब देंहटाएंवाह बहुत सुन्दर रचना ... कान्हा संग होली मनाएं ... फिर तो सब दुःख दर्द आप ही गुम हो जाएँ ...
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