जब लडखडाया मैं
"निम्नलिखित कविता में एक बच्चे के लिये उसकी माँ की उपयोगिता को दर्शाया गया है "
जब लडखडाया मैं
तो तूने ही संभाला
जब घबराया मैं तो
हौंसला था बढ़ाया
जब गिरा था कभी
तूने ही था उठाया
जब शरमाया मैं तो
प्यार से समझाया
हाथ पकड़ लिखना
तूने ही था सिखाया
प्रातः को उठना
तूने ही था बताया
हर एक कदम पर
तू चली बन के साया
तेरी नसीहतों का आज
मतलब समझ में आया
जो कामयाबी को इतने
पास मैंने पाया
गर तू ना होती माँ
तो शायद मैं होता
जैसे कोई सूखा पौधा
जिसको माली न
हो सींच पाया
मेरी ये सारी खुशियाँ
सभी देंन हैं तेरी माँ
मैं तो हूँ दुनिया में
सबसे ज्यादा खुशनसीब
के मैंने सर पर अपने
माँ के आँचल को हमेशा पाया
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