हास्यपूर्ण कविता "एक दोस्त की शादी पर "



एक दोस्त की शादी पर 
दूसरे ने जबर्दस्त खुशी मनाई 
किसी के कारण पूछने पर
बोला लो इसकी भी शामत आई 

इसने मेरा व्यंग बनाया
घड़ी-घड़ी था मुझे चिढ़ाया
आज घोड़े पर शान से है बैठा
जिएगा फिर तो गधे की लाइफ

मुझको कहता था "जोरू का गुलाम,
बिन भाभी इजाज़त कर ले कुछ काम" 
तब समझेगा मेरे मन की पीड़ा
जब पॉकेट पे होगी मेडम की लगाम

सब को है बेशक ये पता
बिन पत्नी घर में न पत्ता हिलता 
फिर भी अपने को मुखिया मानकर
करते रहते बस झूठी बड़ाई 
देखो इसकी भी शामत आई











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