जीवन पर कविता |कैसा है जीवन संग्राम
जीवन पर कविता | कैसा है जीवन संग्राम
कैसा है यह जीवन- संग्राम
होता है बड़ा कठिन यह काम
पूरे जीवन इसके ही खातिर
हम ना करते बिलकुल आराम
जीवन के हर इक मोड़ पर
संग्राम बिना कहे संग चल दे
अपने ही भाई-बहनों संग हम
बचपन में खिलौंनों पर झगड़ते
और जब समझदार हो जाते
तो उन से जायदाद पर उलझ पड़ते
रोज सुबह आफिस के लिए
बसों में हैं ठुस -ठुस के भरते
किसी ka गलती से हाथ लग जाये
तो सारे एक से ही चिपट पड़ते
कभी तो सिर्फ़ एक रोटी के लिए
दीन-हीन आपस में लिपट पड़ते
और कभी एक लड़की की खातिर
दो दोस्त भी बंदूकें चलाया करते
चाहे अच्छा करके या फिर बुरा
सब ही तो चाँहे हैं बढ़ना यहाँ
इस कर्म में हम सबका नाम है
क्या बच्चे-बूढे या फिर जवान हैं
अरे प्यारे इसी का नाम तो जीवन-संग्राम है
हां इसी का नाम तो जीवन-संग्राम है
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बहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंकविता सराहने के लिए,शुक्रिया लोकेशजी ।
जवाब देंहटाएंजीवन संग्राम जिससे हर कोई रोज़ साक्षात्कार करता है ...
जवाब देंहटाएंपल पल संघर्ष करता है शायद यही है और तोमे इसे करना होगा इंसान को ... शायद यह नियति भी है ...
आभार, दिगम्बरजी ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर यथार्थपरक चित्रण। वाह। बहुत खूब।
जवाब देंहटाएंआभार
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