एक धरा है एक गगन है
"प्रस्तुत कविता देश की एकता को बनाने पर जोर देती है|"
एक धरा है एक गगन है
सब ही खाते एक सा अन्न हैं
एक जैसा है लहू सभी में
फिर भी हम सब क्यों बंटे हैं
क्यों बना लीं इतनी दीवारें
दिल में भी न झाँक हैं पाते
दर्द भरा है सभी के अंदर
ये भी नहीं जता ही पाते
चांहे कोई लगे बहकाने फिर
भी एक दूजे के हाँथ को थामें
हम एक माता की हैं संताने
साबित करेंगे वक़्त के आने
हम सारे हैं भाई-भाई
तोड़ेंगे जो बेड़ी थी बनाई
इन्सानियत की राह चलेंगे
खुशियों से अब दीप जलेंगे
साथ रहेंगे तभी सवरेंगे
वर्ना तो बस टूट गिरेंगे
कभी ऐसा न होने देंगे
नये भारत का निर्माण करेंगे
हम सशक्त भारत का निर्माण करेंगे
जब युवा सारे मिलकर कहेंगे
जय हो हमारा हिन्दुस्तान
यह हमारा हम इसकी हैं पहचान
यह हमारा हम इसकी हैं पहचान
यह हमारा हम इसकी हैं पहचान
(अर्चना)
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