वर्षा ऋतु पर कविता "उजली-सी हर कली है दिखती"


वर्षा ऋतु पर कविता "उजली-सी हर कली है दिखती"



उजली-सी हर कली है दिखती
और धरती ने कर लिया श्रृंगार
वर्षा ने तो प्रसन्न कर दिया 
हर एक डाली हर एक पात 
खुशबू मिटटी की फैली है
एक-एक कण में आया निखार
क्या कोयल और क्या पपीहा
सुना रहे हैं मिलन का राग 
अब तो सब के पंख आ गये
थमते नहीं धरती पर पाँव
क्या इंसान और क्या पशु-पंछी
हर्षित हुए कर वर्षा में स्नान


धरती पर कविता पढ़ें
धरती माँ






1 टिप्पणी: