वर्षा ऋतु पर कविता "उजली-सी हर कली है दिखती"
उजली-सी हर कली है दिखती
और धरती ने कर लिया श्रृंगार
वर्षा ने तो प्रसन्न कर दिया
हर एक डाली हर एक पात
खुशबू मिटटी की फैली है
एक-एक कण में आया निखार
क्या कोयल और क्या पपीहा
सुना रहे हैं मिलन का राग
अब तो सब के पंख आ गये
थमते नहीं धरती पर पाँव
क्या इंसान और क्या पशु-पंछी
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति :)
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