सिर्फ साल में
नौ ही दिन
कन्या को है
पूजा जाता
बाकि के दिनों
में क्यों
अत्याचार है
किया जाता
बचपन से ही
बेटी को ही
बार-बार रोका
टोका जाता
यह मत कर
वो कर ले
पाठों को है
पढ़ाया जाता
क्यों नहीं बेटों
को भी यह
सब ज्ञान है
दिया जाता
औरत की इज्जत
करना बचपन
से कोई क्यों
नहीं सिखाता
औरत नहीं होती
कोई वस्तु
फिर क्यों उसको
बेचा जाता
लड़केवालों को दिखाने
के लिए
बार-बार क्यों नुमाइश
बनाया जाता
औरत ही हो
जाती क्यों
एक औरत की
दुश्मन है
अपने पति और बेटे
की गलतियों पर
क्यों परदे को है
डाला जाता
क्यों इतना सारा
बहू और बेटी में
फर्क है किया जाता
शादी के अलावा भी
होते हैं कुछ बेटी
के मन के सपने
क्यों नहीं उसको
भी सपने पूरा
करने का मौका है
दिया जाता
उसमे भी बेटे
सी क्षमता
यह हमारे समझ
अभी भी क्यों
नहीं है आता
अगर माँ -बाप ही
साथ न देते तो क्या
साक्षी और पी.वी.सिन्धु
कोई भी बन पाता
कहने वाले कहते
रहते हैं इससे
फर्क नहीं कुछ भी
है पड़ पाता
जब लाती हैं बेटियां
गोल्ड मेडल्स
तो घर ही क्या
देश का नाम भी
रौशन हो जाता
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