मेरी गेंद
"निम्न कविता में मैंने बच्चों का का गेंद के प्रति लुभाव चित्रित किया है"
मेरी गेंद है कितनी प्यारी
रंग बिरंगी उछलने वाली
इधर से फेंकू उधर से आये
मेरे मन को है बहलाये
यही तो बैट की दोस्त कहलाये
दोनों मिलकर रंग जमायें
बिन इसके तो कुछ भी न भाये
रोज ऐसी एक गेंद मिल जाये
(अर्चना)
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