कविता "दिवाली"


दिवाली


दीप जगे हैं घर सजे हैं
सबके चेहरे खिले लगे हैं
बच्चे आतिशबाजी करके

देखो कैसे नाच रहे हैं
खील-बताशे मिठाइयाँ
सब बड़े चाव से ही खा 
रहे हैं उपहार दे एक-दूजे
को खुशियाँ आपस में
बाँट रहे हैं और लौटे 
अयोध्या राम आज के
दिन इसलिये दीवाली 
उत्सव मना रहे हैं
अच्छाई पर बुराई की
जीत हुई इसलिये
अंधकार को मिटा रहे हैं






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