सपनों पर एक कविता "“देखती है सारी दुनिया हर दिन कोई नया सपना”

देखती है सारी दुनिया
हर दिन कोई नया सपना
कुछ के सपने होते पूरे
कुछ का सपना टूटता
कोई सपना होता अच्छा
कोई लगता बड़ा बुरा
कोई देता प्रेरणा बढ़ने की
और कोई डरा कर जगाता
सपनों की दुनिया मगर
होती है विचित्र भी बड़ी
कभी -कभी गरीब को भी
दिखती अपने घर गाड़ी खड़ी
तो कोई लालाजी सपने में
माजने लगते होटल में बर्तन
और झट खुलती आँख उनकी
बोलते आज सपने में हद हो गयी
लेकिन बहुत भी विचार जुड़े
इन सपनों की नगरी से
अगर सपने में दावत खा ली
अगले दिन बुरी खबर मिलती
पता नहीं के क्या राज है
इन सपनों की बातों का
चाहे कोई कुछ भी कहले पर
सुहाने सपनों में मजा बहुत ही आता

1 टिप्पणी: