जिंदगी पर कविता "इस जिंदगी की कशमकश में "
इस जिंदगी की कशमकश में
कुछ ख्वाब हुए पूरे
पर जो जरूरी थे वो ही बस क्यों रह गए अधूरे
दौड़े थे वक़्त से भी आगे
और छू के भी देख लिए सितारे
मगर हम अपनो के ही जज़्बात पढ़ना भूल गए
इस जिंदगी की कशमकश में
कुछ ख्वाब हुए पूरे
पर जो जरूरी थे वो ही बस क्यों रह गए अधूरे
पा लिया था नाम ऊंचा
और दुनिया में भी पहचान बना ली
मगर हम अपनों की ही नज़र से बहुत दूर हो गए
इस जिंदगी की कशमकश में
कुछ ख्वाब हुए पूरे
पर जो जरूरी थे वो ही बस क्यों रह गए अधूरे
ना करी रात-दिन की फिकर
और काम में अपने हर मौसम भूले
मगर अपनों की छोटी -छोटी खुशी घर ले आना भूल गए
इस जिंदगी की कशमकश में
कुछ ख्वाब हुए पूरे
पर जो जरूरी थे वो ही बस क्यों रह गए अधूरे
इस जिंदगी की कशमकश में
कई बार जीवन की दोड़ में खुद को भूल जाते हैं हम ...पर वक़्त एहसास कराता है सबको ... संभल जाने के बाद नयी शुरुआत बुरी नहीं होती ... रचना के मर्म को समझना जरूरी है ...
जवाब देंहटाएंआभार, नसवाजी ।
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