कविता "यादें"




यादें


"निम्नलिखित  कविता में एक प्रेमिका अपने बीते दिनों को याद कर रही है"


जब यादों ने
बड़ा तडपाया
और याद बीता
 हुआ कल आया
जा  खोला
उस संदूक को
जो भरा था
तेरी निशानियों से
कुछ खट्टी और
कुछ मीठी
हम दोनों की 
शैतानियों से
थी उसमे अपनी
कुछ  तस्वीरें 
जो बयां करती हैं 
कि साथ में तेरे थे
हम कितना खुश 
और जहाँ को थे 
हम तो भूले
न रह पाते थे
एक दिन बिन मिले
इस कदर थे
हम एक -दूजे से जुड़े
कुछ सूखे गुलाबों 
के पत्ते 
जो अब भी हैं
किताबों में पड़े 
लगता है
अभी  भी ताज़े हैं
जैसे जिन्दा तेरी
सब यादे हैं
वो तेरे दिए
हुए दो कड़े
अब भी उतना ही
चमकते हैं
पर तू ही नहीं
है साथ मेरे 
इस बात को दिल
क्यों  ना माने
तेरे आखिरी ख़त 
को भी मैंने
बार बार लगाया 
 इस सीने से 
तेरी मजबूरियों
के चलते
हम हुए जुदा
तेरी राहों से
पर अब भी है
मुझे इंतज़ार
लगता है तुम
आ जाओगे
वर्ना जी लूँगी 
इन यादों के संग
ये यादें बहुत हैं
मेरे लिए
(अर्चना)



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