सावन पर कविता"आया सावन सुहाना "


सावन पर कविता"आया सावन सुहाना "

सावन पर कविता

ये बारिश की बूंदे
देखकर के दिल झूमे
ये मिट्टी की खुशबू
कर जाए कुछ जादू
जो चलें ठंडी हवाएँ
मन खुद ही गुनगुनाए
कोई चिड़िया पंख फड़फड़ाए
लगे धुन मधुर सुनाये
कहीं मेंढक की टर-टर
कहीं कोयल भी गाये
हम कागज की कश्ती 
को फिर से बनाएँ
चलो झूला झूल आयें 
 ऊंची पेंग भी बढ़ाएँ
लदे अंबियों से वृक्ष
सखी आओ तोड़ लाएँ
है आया सावन सुहाना 
चलो आनंद ले आयें
ऐसी मनोहर बेला तो 
वर्ष में एकबारी आये

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कविता"अनजान रास्ते "


ये कैसे हैं अनजान रास्ते 
जिस ओर हम हैं बढ़े चले
लगता है डर कहीं बीच में
ये साथ हमारा ना छूट ले

आँधी भी है तूफान भी है
और आग का दरिया भी है
दुआ है अब खुदा से यही 
इन सबको पार कर सकें
ये कैसे हैं अनजान रास्ते 
जिस ओर हम हैं बढ़े चले

खुशियाँ कम और गम भरकर हैं
यहाँ रहना आंसू पीकर है
दुआ है अब खुदा से यही
कि हम तो फौलाद बन सकें
ये कैसे हैं अनजान रास्ते 
जिस ओर हम हैं बढ़े चले
लगता है डर कहीं बीच में
ये साथ हमारा ना छूट ले

जीवन पर कविता |कैसा है जीवन संग्राम

जीवन पर कविता | कैसा है जीवन संग्राम



कैसा है यह जीवन- संग्राम

होता है बड़ा कठिन यह काम

पूरे जीवन इसके ही खातिर

हम ना करते  बिलकुल आराम

जीवन के हर इक मोड़ पर

संग्राम बिना कहे संग चल दे

अपने ही भाई-बहनों संग हम

बचपन में खिलौंनों पर झगड़ते

और जब समझदार हो जाते 

तो उन से जायदाद पर उलझ पड़ते

रोज सुबह आफिस के लिए

बसों में हैं ठुस -ठुस के भरते

किसी ka  गलती से हाथ लग जाये

तो सारे एक से ही चिपट पड़ते

कभी तो सिर्फ़ एक रोटी के लिए

दीन-हीन आपस में लिपट पड़ते

और कभी एक लड़की की खातिर

दो दोस्त भी बंदूकें चलाया करते

चाहे अच्छा करके या फिर बुरा

 सब ही तो चाँहे हैं बढ़ना यहाँ

 इस कर्म में हम सबका नाम है

क्या बच्चे-बूढे या फिर जवान हैं

 अरे प्यारे इसी का नाम तो जीवन-संग्राम  है

 हां इसी का नाम तो जीवन-संग्राम है

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