कविता " मैं नहीं हूँ कायर कोई "

 

मैं नहीं हूँ कायर कोई 


"प्रस्तुत कविता में अदभुत साहस का वर्णन है"

 
 
कोशिश अपनी रखूँगा जारी
जब तक विजय न पाऊंगा
मैं नहीं हूँ कायर कोई 
जो राह से हट जाऊंगा
 
लाख रुकावट आये चाहें
उनसे भी टकराऊंगा
बनकर एक चट्टान द्रण सी
अब दुखों को धूल चटाऊंगा
मैं नहीं हूँ कायर कोई 
जो राह से हट जाऊंगा
अब तक हारा तो क्या हुआ
फिर से गिरकर उठ जाऊंगा
कभी रेंग के कभी घिसट के 
आगे बढ़ता जाऊंगा
मैं नहीं हूँ कायर कोई 
जो राह से हट जाऊंगा
कोशिश अपनी रखूँगा जारी
जब तक विजय न पाऊंगा
जब तक विजय न पाऊंगा
 
अर्चना



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