ये कैसे हैं अनजान रास्ते
जिस ओर हम हैं बढ़े चले
लगता है डर कहीं बीच में
ये साथ हमारा ना छूट ले
आँधी भी है तूफान भी है
और आग का दरिया भी है
दुआ है अब खुदा से यही
इन सबको पार कर सकें
ये कैसे हैं अनजान रास्ते
जिस ओर हम हैं बढ़े चले
खुशियाँ कम और गम भरकर हैं
यहाँ रहना आंसू पीकर है
दुआ है अब खुदा से यही
कि हम तो फौलाद बन सकें
ये कैसे हैं अनजान रास्ते
जिस ओर हम हैं बढ़े चले
लगता है डर कहीं बीच में
ये साथ हमारा ना छूट ले
बहुत खूब
जवाब देंहटाएंधन्यवाद लौकेश जी
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी ये रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शुक्रवार 21 जुलाई 2017 को लिंक की गई है...............http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसूचना देने के लिए धन्यवाद श्वेता जी ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना.
जवाब देंहटाएंआभार विनोदजी |
जवाब देंहटाएंbadhiya post
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर...
जवाब देंहटाएंआभार , सुधाजी और अनामिकाजी |
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