कविता"भ्रष्टाचार"


भ्रष्टाचार


"इस कविता में भ्रष्टाचार के कारण और निवारण का थोड़ा सा वर्णन किया गया है"


सब कहते हैं
सिस्टम में कमी है
भ्रष्टाचार ने
हद कर दी है 
अपनी आदत कोई
छोड़ता नहीं है
बस दूसरे की 
कमियां दिखती हैं 
अपने अन्दर कोई 
क्यों झांकता नहीं है
सिस्टम के हम
सब ही अंग हैं
ये तो एक पर 
टिकता नहीं है
अगर इसकी
अर्थी है उठानी
हम सबको
ही  मिलकर
पहल करनी है
हम चांहे तो
कोई बुज़ुर्ग 
कार्यालयों की
कतारों से बचेगा
हम चाहेंगे तो ही
किसान अब न 
कोई खुदखुशी करेगा
हम चाहेंगे तो
विकास देश का
एक नहीं 
चौतरफा होगा 
अब हमको ,हम
अलग -थलग नहीं 
सब एक परिवार 
हैं यह मानना होगा
इसी तरह इस 
भ्रष्टाचार की जंजीरों
से  अपना 
यह प्यारा देश बचेगा 
 
(अर्चना)









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