चार सहेलियाँ
"इस कविता में चार सहेलियों के मिलने पर जो मनोरंजन होता है उसका वर्णन है"
चार सहेलियाँ जब मिल जाती
फिर तो जैसे बात बन जाती
कुछ इधर की कुछ उधर की
बातों पर बातें हैं चलती
कोई करती सासु की बुराई
नजरें दूसरी के सेट पर आयीं
कोई करती अपनी साड़ी की बढाई
तीसरी ने थी फिर भौंहे चड़ाई
फिर बातें बच्चों की आयीं अपने-
अपने बच्चे की तारीफ की पुल बनाई
फिर हुई कुछ शॉपिंग की बातें
कॉफी भी ख़त्म हुई दो बार आके
बात पहुंची फिर कुकिंग-शुकिंग पर
हुई शेयर फिर रेसेपी भी जमकर
पता न चला कब समय गुज़र गया
पर चौथी का बहुत ऐ.सी. बिल बढ़ गया
अर्चना
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें